Wednesday, September 11, 2013

एक कविता


छाया चित्र : उमेश महादोषी



ओढ़ी हुई चादर

स्वप्न में 
मैं उत्तराखण्ड के 
सी एम की कुर्सी पर था
और नींद के साथ
मेरा चैन भी गायब था
कानों में
मृत्यु से भी भयंकर तबाही झेलते
लोगों का कृन्दन
और आँखों में 
किसी बूढ़े-सठियाए हाईकमान का चेहरा
मुझे 
पसीने से तर-बतर किए था
राम जाने!
मैं कितना बेवश था

अचानक मेरी नींद टूटी
मैंने ओढ़ी हुई चादर को
उतारकर फेंक दिया
भींचकर
अपनी आँखें बन्द कीं
और कानों को
खुली हवा में छोड़ दिया

मैं इतना बेवश था!