जब भी / मैंने
अपने गाँव के पास बहती
नदी के किनारे बने बांध पर
टहलते हुए
अथवा
समीपस्थ रेलवे स्टेशन के
सूने प्लेटफार्म की किसी बेंच पर
बैठे हुए
कोई साँझ
बिलकुल अकेले में बिताई है
मुझे / अपनी मरी हुई कौम की
बहुत याद आई है
और उतनी ही याद
उस कफ़न की आई है
जो कौम की कब्र पर / बर्षों
हवा में फड़फड़ाता रहा
और अंतत:
तार-तार हो गया!
1 comment:
बड़ी ही मार्मिक रचना..
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