मेरे जिस्म में
सुलगती आग से
धुंआ उठता है
मेरा जिस्म
एक भटकती रूह से
चिपका फिरता है
वह आग से
मुक्ति चाहता है
और जब/ जिस्म
रूह से अलग होना चाहता है
रूह/ खुद
जिस्म से चिपक जाती है
वह/ जिस्म के साथ जलकर
भटकाव से मुक्ति चाहती है
रूह से अलग होना चाहता है
रूह/ खुद
जिस्म से चिपक जाती है
वह/ जिस्म के साथ जलकर
भटकाव से मुक्ति चाहती है
पर, मुक्तिदाता हे!
सुलगती आग का धुंआ
तुम सोखना मत कभी
आग को/ लपटों में
बदलना मत कभी
जिस्म और रूह को
दे सको जितनी
उम्र देना/ भटकाव देना
और बस
आग का सुलगाव देना !
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