Friday, July 9, 2010

लाख निराशाओं के बावजूद

कितने अनंत तोड़ने होंगे / अभी
तुम्हारे लिए ?
तनिक/ मेरे थके-हारे बदन की ओर तो देखो!
तुम्हारी झलक भर के लिए / मैं
जाने कितनी कहानियों का पात्र बनता / भटकता रहा हूँ
और तुम / खुरदरे धरातल पर
अधूरे अंत की तरह
काल की ओट में गुम होते रहे हो
यथार्थवादी कहानियों में अनंत नहीं टूटता
सो मैं
कल्प-कथाओं का पात्र बनकर भी भटका हूँ
अनंत के पार
तुम होगे / तुम्हारी छवि होगी
यह विश्वास / हर बार
सूखे ठूंठों-से पहाड़ों और वीरान जंगलों में
खोकर रह गया है
पर लाख निराशाओं के बावजूद
अपनी ज़मीन से तुम्हारी आवाज सुनता हूँ
तो अनंत की ओर दौड़-दौड़ जाता हूँ
कितने अनंत तोड़ने होंगे / अभी
तुम्हारे लिए
समझ नहीं पाता हूँ !

1 comment:

हरकीरत ' हीर' said...

पर लाख निराशाओं के बावजूद
अपनी ज़मीन से तुम्हारी आवाज सुनता हूँ
तो अनंत की ओर दौड़-दौड़ जाता हूँ
कितने अनंत तोड़ने होंगे / अभी
तुम्हारे लिए
समझ नहीं पाता हूँ !

बहुत गहरा लिखते हैं .......!!