Sunday, September 26, 2010

कुछ हाइकु


||एक||
टालना छोड़ो
होने दो एक बार
होना है जो भी!

||दो||
अलविदा, हे!
शब्दों का यह गुच्छा
तुम्हारे लिए

||तीन||
फिर मिलेंगे
जो नहीं निभ सका
निभाने उसे

||चार||
मैं देखूं बस
मछली की सूरत
इस झील में

4 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब .....!!

आपकी पत्रिका मिल गयी थी .....
परिचय की भूमिका जो शब्द बांधे हैं आपने ....मेरा लिखना सार्थक हुआ .....
बहुत बहुत शुक्रिया .....!!

शरद कोकास said...

सही हाइकू हैं

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

उमेश भाई,
सुन्दर हाइकू...साफ़-सुथरी प्रस्तुति! इन हाइकुओं ने बहुत प्रभावित किया-

पेड़ पे टँगे
वे पत्ते सूखकर
उसूल बने!

देखो तो कभी
समुद्र में उतर
जी भरकर!

डूबे मगर
उछले भी तो खूब
मछली बन

मैं देखूँ बस
मछली की सूरत
इस झील में


चतुर्दिक कनफोड़ू शोरगुल के दौर में आप एक शांत और ख़ुशनुमा ख़ामोशी-भरे माहौल में साधनारत्‌ है...!

प्रदीप कांत said...

फिर मिलेंगे
जो नहीं निभ सका
निभाने उसे

बहतरीन...