Thursday, June 30, 2011
एक व्यक्ति का होना
सत्ता के साये से निकलकर
कितना महत्वपूर्ण होता है
एक व्यक्ति का होना
सत्ता के चरित्र/और
सत्ता के विरोध
दोनों को दरकिनार करके
कितना महत्वपूर्ण होता है
सत्ता की ही एक कुर्सी पर
एक व्यक्ति का बैठना
यह साबित करता है
इस शहर से
पॉलीथीन का गायब होना
भले, इस भले काम में
शामिल है आज- पूरा का पूरा शहर
पर शहर तो यही था कल भी
नहीं था तो बस एक व्यक्ति!
कुछ लोग कहते हैं-
कितने दिनों तक रहेगी यह बंदिश
हो सकता है- लोग सही हों
और कल फिर फैल जाये वही तपिश
लेकिन क्या तब
और अधिक महत्वपूर्ण नहीं हो जायेगा
एक व्यक्ति का होना?
जो सत्ता का चरित्र नहीं बनता
सत्ता का विरोध भी नहीं करता
सिर्फ सत्ता का उपयोग करता है
और बिना जताये/पूरी सहजता के साथ
‘सत्ता के विरोध’ के उद्देश्य तक पहुँचता है
अन्यथा जो ‘उद्देश्य’
नहीं हो पाता है हासिल
व्यक्तियों के होने से
क्यों हासिल हो जाता है
एक व्यक्ति के होने से!
और हाँ,
यदि हासिल हो सकता है
कोई एक उद्देश्य
तो ‘और’ भी हो सकते हैं
बात-
सिर्फ सत्ता के साये से निकलने की है
‘एक व्यक्ति होने’ की है!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
यह साबित करता है
इस शहर से
पॉलीथीन का गायब होना
क्या बात है उमेश जी .....
नए बिम्ब हमेशा कविताओं में रोचकता लाते हैं .....
आपकी पत्रिका मिली ....
नज़्म छापने के लिए आभार .....
जी सरस्वती-सुमन क्षणिका विशेषांक निकल रहा है ....
और आप तो क्षणिकाओं में माहिर हैं ही ....
भेजिए न ......
परिचय और तस्वीर के साथ ....
बेशक,सबसे ज्यादा महत्व है सत्ता के साये से बच रहकर कुछ सार्थक पहल के जज्बे का.
अच्छा लगा पढ़कर.
अन्यथा जो ‘उद्देश्य’
नहीं हो पाता है हासिल
व्यक्तियों के होने से
क्यों हासिल हो जाता है
एक व्यक्ति के होने से!
और हाँ,
यदि हासिल हो सकता है
कोई एक उद्देश्य
तो ‘और’ भी हो सकते हैं
बात-
सिर्फ सत्ता के साये से निकलने की है
‘एक व्यक्ति होने’ की है!
बहुत सही कहा आपने
लेकिन इस पार्ट के फॉन्ट का रंग ब्लॉग की पृष्ठभूमि से मेल खा रहा है तो दिख नहीं रहा
Post a Comment