तुम 'जो कुछ' लड़ रहे हो
'उसे' लड़ते हुए
कभी नहीं थकोगे
जानता हूँ
तुम्हारे अंधे जूनून को
पहचानता हूँ
थोड़े से व्यय से
अधिक आय का वहम
जब किसी के दिलोदिमांग पर
छा जाता है
तो थकावट का कचरा भी
अंध-उत्साह के दरिया के
भयानक बहाव में बह जाता है
तुम थोड़े से गोली-बारूद के व्यय से
बहुत सारी निर्दोष 'जानों' को
'आय' मानकर
अपनी क्रूरता के बोरों में भर रहे हो
सोचकर देखो
भारी भूल कर रहे हो
व्यय के खाते में / लेखा
गोली-बारूद का नहीं
उन मौतों का होता है
जिनका अपव्यय / तुम
अपनी आत्म-चिंतन की
तिजौरी का ताला तोड़कर कर रहे हो
काश! तुमने थोड़ी-सी
शिक्षा पाई होती
तो जरूर / तुम्हारी समझ में
इतनी सी बात आयी होती
'जान' लेना कोई 'आय' नहीं होता
मौत देना / जरूर
बहुत बड़ा 'अपव्यव' होता है
यह भी जानता हूँ
सोच की मशीनी प्रक्रिया में स्थिति होकर
मशीन की ही तरह
ये कर्म कर रहे हो
जिसका लक्ष्य
सिर्फ सपनों में होता है
तुम
ऎसी व्यापारिक इकाई बन रहे हो
तुम्हें स्वयं नहीं मालूम
'क्या' और 'क्यों' कर रहे हो
सपनों की नाल पकड़े
पल-पल / बिना थके
क्रूरता की गहराई में
तुम उतरते-चढ़ते हो
पर / क्या कभी इन सपनों के
स्रोत तक पहुंचते हो ?
यद्यपि तुम ब्रह्मा नहीं हो
उनके अनुयायी भी नहीं हो
फिर भी तुम्हारे लिए समझना जरूरी है
कमल की नाल पकड़कर
अथाह जल की अनंत गहराइयों में उतरकर
वह भी नहीं खोज पाए थे
कमल-नाल का स्रोत
वह स्रोत तो / सृजन के
छोटे से बीज में समाया था
जिसके लिए कमल-नाल के सहारे
किसी उछल-कूद की नहीं
थोडा सा ध्यानस्थ होने की जरूरत थी
जिसे अंततः उन्होंने अपनाया था
तुम्हारे सपनों का स्रोत भी
कहीं वहां विद्यमान है
जहाँ तुम्हारी सोच की मशीनी प्रकिया
तुम्हें लेकर नहीं जाती है
इसीलिए तुम्हारे कर्मों की
अपेक्षित परिणति भी नहीं हो पाती है
मात्र एक व्यापारिक इकाई की तरह
तुम
चलते भर रहते हो
'वो' जो तुम लड़ रहे हो
लड़ते भर रहते हो
हो सके तो
दो मिनट के लिए विश्राम करो
और मेरी छोटी सी बात
ध्यान से सुनो
ब्रह्मा जी- तुम्हारे भी 'परम' हैं
क्योंकि, वे- देवता और दैत्यों
दोनों के जनक हैं
उनके पद-चिन्हों पर
थोडा तो चलकर देखो
कालचक्र को साक्षी बनाकर
सपनों के वास्तविक स्रोत के बारे में सोचो
ब्रह्मा से पहले
रौद्र का प्रकटीकरण नहीं होता
यह बात अच्छी तरह समझ लो
जो कुछ तुम कर रहे हो
अनथक करते हुए भी
विध्वंस तुम्हारे वश में नहीं है
और वह
तुम्हारा अंतिम लक्ष्य भी नहीं है
इसलिए
और अपेक्षित परिणति के लिए
सृजन की ओर कूंच करो
देवता या दैत्य !
तुम जो कोई भी हो
2 comments:
सृजन की ओर कूंच करो
देवता या दैत्य !
तुम जो कोई भी हो
-बहुत गहरी संदेश देती रचना...
सपनों की नाल पकड़े
पल-पल / बिना थके
क्रूरता की गहराई में
तुम उतरते-चढ़ते हो
पर / क्या कभी इन सपनों के
स्रोत तक पहुंचते हो ?
ACHCHHEE PANKTIYAN
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