Thursday, July 8, 2010

आग का सुलगाव

मेरे जिस्म में
सुलगती आग से
धुंआ उठता है
मेरा जिस्म
एक भटकती रूह से
चिपका फिरता है
वह आग से
मुक्ति चाहता है

और जब/ जिस्म
रूह से अलग होना चाहता है
रूह/ खुद
जिस्म से चिपक जाती है
वह/ जिस्म के साथ जलकर
भटकाव से मुक्ति चाहती है

पर
, मुक्तिदाता हे!
सुलगती आग का धुंआ
तुम सोखना मत कभी
आग को/ लपटों में
बदलना मत कभी

जिस्म और रूह को
दे सको जितनी
उम्र देना/ भटकाव देना
और बस
आग का सुलगाव देना !

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