Monday, December 31, 2012

एक और कविता

मित्रो! आज जो  कविता आपके समक्ष रख रहा हूँ, पता नहीं वह क्या प्रभाव छोड़ेगी। पर आज जिन हालातों के बीच हम खड़े हैं, वहां ऐसी कल्पना को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता। हमें संभावनाओं के हर कोने की पड़ताल करनी ही होगी! 

ऐसे हथियार तैयार करो

आओ वैज्ञानिक!
मुझ कवि के साथ मिलकर
काम करो
मैं दूंगा तुम्हें कुछ विचार/कुछ कल्पनाएं
तुम हथियार तैयार करो
बारूद और मारक रसायनों में
कुछ ऐसे न्यूक्लियर सुधार करो
कि तुम्हारे बनाए हथियार
पहचान सकें
सही को, गलत को
शान्ति के चाहक को
आतंक के वाहक को
उन हाथों को-
जिनमें होना चाहिए उन्हें
उन निशानों को-
जिन्हें भेदना चाहिए उन्हें
और उनमें कुछ ऐसे सुधार करो
कि वे अपनी इच्छा से चल सकें
उनकी इच्छा
सिर्फ और सिर्फ मानव सभ्यता की सुरक्षा हो
जिन्हें बचाना चाहिए
उन्हें वे बचा सकें
जिन्हें खत्म करना चाहिए
उन्हें वे खत्म कर सकें

वैज्ञानिक भाई!
यह काम पूरी सावधानी से करना
अपने मस्तिष्क और आंखों में
थोड़ा सा मेरा अंश रखना!

Friday, December 7, 2012



यूँ तो फिर लेट हो गए। खैर! सत्ता की कई कविताओं के बीच मेरी भी एक कविता। हो सके तो एक दृष्टि डालियेगा । ..... उमेश महादोषी 



पतवार छीन लो!

मझधार में नाव हो
और मेरे हाथों में 
पतवार हो
मैं लहरों पर 
कविताएँ  लिखता रहूँ 
और नाव डूब जाये
बताओ
क्या मुझे माफ कर दिया जाये?

इसलिए कहता हूँ 
देश को 
देश के नजरिए से देखो
मुसाफिरो! 
आंखें खोलो और समझो
एक जर्जर नाव की तरह देश
हिचकोले खा रहा है 
और वह, जिसे नाव खेनी है
बस कविताओं का स्वप्नजाल 
बिछा रहा है

उठो!
एक ऐसा नाविक ढूंढ़ो
जिसके बारे में 
चाहे जो कहा जाये
पर वह
पतवार चलाना जानता हो
नाव को मझधार से 
निकालना जानता हो

देश रहेगा
तो देश चलेगा भी
लहरों पर कविताएँ लिखने से
न देश बचता है
न देश चलता है
और आज जो हमारा नाविक है
वह सिर्फ और सिर्फ
लहरों पर कविताएँ लिखता है!