Monday, March 7, 2016

तुम और अलकनन्दा

उस दिन
गौचर जाते हुए
मेरे साथ थी
अलकनंदा
और तुम भी!

मैं तुम्हें देखता था
तो दिखती थी- अलकनंदा 
और अलकनंदा को देखता था
तो दिखती थीं- तुम
गौचर चहुँचने तक
मेरे साथ थी- केवल अलकनंदा
गुम हो चुकी थीं तुम
पहाड़ों की तलहटियों-खोहों में कहीं
और ढूँढ़ पाने का 
मुझमें साहस था नहीं

वापसी में 
इसका ठीक उल्टा हुआ
घर आने तक
गुम हो चुकी थी अलकनंदा
मेरे साथ थीं- केवल तुम
हाँ, केवल तुम!
नहीं मालूम
मेरे अन्तर्मन के 
विकारों का ज्वार था यह
या उस जादुई हवा से
दूर होने का असर

काश!
ईश्वर ने मुझे
बनाया होता- कोई पहाड़
या फिर
किसी खाई में उगा
पहाड़ों से होड़ लेता
कोई जंगली पेड़
कुछ नहीं तो
एक छोटा-सा झरना
या फिर
कोई छोटा-सा पहाड़ी नाला ही

मेरे लिए
अलकनंदा और तुम
एक हो जातीं
सदा-खिलखिलाती
और ठुमठुमाती
आगे बढ़ती जातीं...
मैं देखता
देखता...
बस देखता......!

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